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जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला: कांग्रेस से चुनावी जीत और बीजेपी से सरकार का सहयोग क्यों?| OPINION

उमर अब्दुल्ला को चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस और सरकार चलाने के लिए बीजेपी की जरूरत क्यों है?

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के नेता उमर अब्दुल्ला के सामने एक जटिल चुनौती है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने 90 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत हासिल किया, लेकिन उमर अब्दुल्ला को सरकार चलाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) के समर्थन की आवश्यकता होगी। यह स्थिति क्षेत्रीय और केंद्र की राजनीति में जटिल संतुलन का उदाहरण है, जहां चुनाव जीतने और सरकार चलाने के लिए एक ही रणनीति सफल नहीं हो सकती।

चुनावी नतीजे और गठबंधन की राजनीति

जम्मू-कश्मीर में NC ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और कुल मिलाकर 49 सीटें हासिल कीं, जिसमें कांग्रेस के 6 और CPI-M के 1 सदस्य भी शामिल थे। इससे उन्हें विधानसभा में बहुमत प्राप्त हुआ और उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। हालांकि, बीजेपी ने जम्मू क्षेत्र में 29 सीटें जीतकर एक बड़ी ताकत के रूप में उभरकर NC-कांग्रेस गठबंधन को चुनौती दी। जम्मू में बीजेपी की लोकप्रियता से स्पष्ट है कि उमर अब्दुल्ला के लिए इस क्षेत्र को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होगा।

सरकार चलाने के लिए बीजेपी का समर्थन क्यों महत्वपूर्ण है?

NC और कांग्रेस का गठबंधन जम्मू-कश्मीर की जनता का समर्थन तो हासिल कर चुका है, लेकिन वास्तविक सत्ता केंद्र में बीजेपी के हाथों में है। जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है, जहां सरकार का नियंत्रण सीधे केंद्र द्वारा नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर (LG) के माध्यम से होता है। उमर अब्दुल्ला को अपनी नीतियों को लागू करने और सरकार चलाने के लिए केंद्र के सहयोग की आवश्यकता होगी, जिसमें बीजेपी का समर्थन महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार और बीजेपी के साथ अच्छे संबंध बनाए बिना, उमर अब्दुल्ला के लिए अपनी सरकार को सुचारू रूप से चलाना मुश्किल हो सकता है।

.जम्मू-कश्मीर

राज्य का दर्जा वापस पाने की मांग

उमर अब्दुल्ला की प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा वापस पाना है। उन्होंने पहले ही घोषणा की है कि उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता राज्य के दर्जे की बहाली के लिए एक प्रस्ताव पारित करना होगा और केंद्र सरकार के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए वे दिल्ली जाएंगे। लेकिन यह काम आसान नहीं होगा। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को सीधे केंद्र के नियंत्रण में रखा है। उमर अब्दुल्ला और उनके गठबंधन को केंद्र से सहयोग और समर्थन के लिए बीजेपी से करीबी संबंध बनाने होंगे, जो एक चुनौतीपूर्ण कदम होगा।

जम्मू क्षेत्र और कश्मीर घाटी के बीच संतुलन

जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे जम्मू क्षेत्र (जो मुख्यतः हिंदू बहुल है) और कश्मीर घाटी (जो मुस्लिम बहुल है) के बीच एक संतुलन बनाए रखा जाए। बीजेपी ने जम्मू क्षेत्र में जीत हासिल की है, इसलिए उमर अब्दुल्ला को जम्मू के लोगों के हितों को ध्यान में रखना होगा। दूसरी ओर, कश्मीर घाटी में उनके ऊपर अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य के दर्जे के लिए काम करने का दबाव होगा। यह संतुलन बनाए रखना NC-कांग्रेस गठबंधन के लिए सबसे कठिन होगा।

केंद्र और लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ संबंध

उमर अब्दुल्ला का कहना है कि उनके लिए केंद्र सरकार के साथ एक स्वस्थ और सहयोगी संबंध बनाना आवश्यक है। अगर केंद्र सरकार और बीजेपी का समर्थन उन्हें नहीं मिलता, तो उनके लिए राज्य में कोई भी ठोस नीतिगत कदम उठाना मुश्किल होगा, क्योंकि केंद्र के पास अभी भी अधिकांश प्रशासनिक शक्तियां हैं, खासकर कानून और व्यवस्था से संबंधित।

निष्कर्ष

उमर अब्दुल्ला को चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस की जरूरत पड़ी, लेकिन सरकार चलाने के लिए उन्हें बीजेपी के समर्थन की आवश्यकता होगी। यह संतुलन और कूटनीति का खेल है, जिसमें हर कदम सोचा-समझा होना चाहिए। उमर अब्दुल्ला की सरकार की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वे कैसे केंद्र सरकार के साथ संबंध बनाते हैं और किस तरह से जम्मू-कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों के हितों को संतुलित करते हैं।

यह देखना बाकी है कि उमर अब्दुल्ला और उनके गठबंधन को केंद्र से कितना समर्थन मिलेगा और वे राज्य की जनता की अपेक्षाओं पर कितने खरे उतर पाते हैं।

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