RBI का बड़ा कदम: रेपो रेट कटौती से मुद्रास्फीति में कमी और विकास में तेजी

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 6 जून 2025 को एक अप्रत्याशित और प्रभावशाली कदम उठाते हुए रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट्स (0.50%) की कटौती की घोषणा की है, जिससे यह दर अब 5.5% हो गई है। यह निर्णय RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के बाद लिया गया, जिसका उद्देश्य देश की आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करना और ऋणधारकों को राहत प्रदान करना है।
रेपो रेट में कटौती: क्या है इसका अर्थ?
रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है। इस दर में कटौती का सीधा प्रभाव बैंकों की उधारी लागत पर पड़ता है, जिससे वे उपभोक्ताओं को कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान कर सकते हैं। इससे व्यक्तिगत ऋण, होम लोन, ऑटो लोन और अन्य ऋणों की ईएमआई में कमी आने की संभावना है, जिससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी और आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा।
गवर्नर संजय मल्होत्रा का दृष्टिकोण
गवर्नर संजय मल्होत्रा ने इस निर्णय को “आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए अग्रिम उपाय” बताया। उन्होंने कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं और घरेलू मुद्रास्फीति के स्थिर रहने के कारण RBI के पास इस तरह के कदम उठाने का अवसर था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अब मौद्रिक नीति की स्थिति ‘समायोजनात्मक’ से ‘तटस्थ’ की ओर बढ़ रही है, जिससे संकेत मिलता है कि भविष्य में और कटौतियों की संभावना सीमित हो सकती है।
मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव

RBI ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को 4% से घटाकर 3.7% कर दिया है, जो पिछले छह वर्षों में सबसे कम है। इससे संकेत मिलता है कि मूल्य स्थिरता बनी हुई है, जिससे केंद्रीय बैंक को आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए अधिक स्थान मिला है। वहीं, GDP वृद्धि दर जनवरी-मार्च 2025 तिमाही में 7.4% रही, जबकि पूरे वित्तीय वर्ष के लिए यह 6.5% रहने का अनुमान है।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 6 जून 2025 को रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती और नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट्स की कमी से मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
मुद्रास्फीति पर प्रभाव
1. मुद्रास्फीति में गिरावट
RBI के अनुसार, अप्रैल 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति 3.2% पर आ गई, जो जुलाई 2019 के बाद सबसे कम है。 खाद्य कीमतों में गिरावट और कोर मुद्रास्फीति के स्थिर रहने से यह संभव हुआ है。
2. मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर
RBI ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 3.7% रखा है, जो 4% के लक्ष्य से नीचे है। यह दर्शाता है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, जिससे केंद्रीय बैंक को आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने का अवसर मिला है。
आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव
1. विकास दर में सुधार की संभावना
RBI ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.5% रखा है, जिसमें 7-8% तक पहुंचने की आकांक्षा है। रेपो रेट और CRR में कटौती से ऋण की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे निवेश और उपभोग को प्रोत्साहन मिलेगा।
2. उपभोग और निवेश में वृद्धि
कम ब्याज दरों के कारण उपभोक्ताओं के लिए ऋण लेना सस्ता होगा, जिससे उपभोग में वृद्धि होगी। इसके साथ ही, व्यवसायों के लिए पूंजी की लागत कम होगी, जिससे निवेश बढ़ेगा और रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
नीति रुख में बदलाव
RBI ने मौद्रिक नीति रुख को ‘समायोजनात्मक’ से ‘तटस्थ’ में बदल दिया है, जो दर्शाता है कि भविष्य में दरों में और कटौती की संभावना सीमित हो सकती है। यह निर्णय मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि के बीच संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है।
निष्कर्ष
RBI द्वारा रेपो रेट और CRR में की गई कटौती से मुद्रास्फीति नियंत्रण में रही है और आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन मिला है। कम ब्याज दरों के कारण उपभोग और निवेश में वृद्धि हुई है, जिससे GDP वृद्धि दर में सुधार की संभावना है। हालांकि, नीति रुख में बदलाव से संकेत मिलता है कि भविष्य में दरों में और कटौती की संभावना सीमित हो सकती है।
रियल एस्टेट और उपभोक्ता ऋण पर प्रभाव
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 6 जून 2025 को रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट्स (0.50%) की कटौती से रियल एस्टेट और उपभोक्ता ऋण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रभाव देखने को मिल रहा है। इस निर्णय से होम लोन की ब्याज दरों में कमी आई है, जिससे ईएमआई कम हुई है और आवासीय संपत्तियों की मांग बढ़ी है।
रियल एस्टेट क्षेत्र पर प्रभाव
1. मध्यम और किफायती आवास की मांग में वृद्धि
रेपो रेट में कटौती से होम लोन की ब्याज दरों में कमी आई है, जिससे मध्यम और किफायती आवास की मांग में वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम विशेष रूप से पहली बार घर खरीदने वालों के लिए फायदेमंद है।
2. डेवलपर्स के लिए पूंजी लागत में कमी
ब्याज दरों में कमी से डेवलपर्स की पूंजी लागत में भी कमी आई है, जिससे वे नए प्रोजेक्ट्स शुरू करने और मौजूदा प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा करने में सक्षम होंगे।
3. बिक्री में वृद्धि की संभावना
कम ब्याज दरों और बढ़ती मांग के कारण रियल एस्टेट क्षेत्र में बिक्री में वृद्धि की संभावना है, विशेष रूप से प्रमुख शहरी क्षेत्रों में।
उपभोक्ता ऋण पर प्रभाव
1. होम लोन ईएमआई में कमी
रेपो रेट में कटौती से होम लोन की ब्याज दरें कम हुई हैं, जिससे ईएमआई में कमी आई है। उदाहरण के लिए, ₹50 लाख के 20 साल के होम लोन पर ₹3,800 से ₹4,000 तक की मासिक बचत हो सकती है।
2. अन्य उपभोक्ता ऋणों पर प्रभाव
ब्याज दरों में कमी का प्रभाव केवल होम लोन तक सीमित नहीं है; यह ऑटो लोन, पर्सनल लोन और अन्य उपभोक्ता ऋणों पर भी पड़ेगा, जिससे उपभोक्ताओं की ऋण लेने की क्षमता बढ़ेगी।
निष्कर्ष
RBI द्वारा रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती से रियल एस्टेट और उपभोक्ता ऋण क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कम ब्याज दरों से होम लोन की ईएमआई में कमी आई है, जिससे आवासीय संपत्तियों की मांग बढ़ी है और उपभोक्ताओं की ऋण लेने की क्षमता में सुधार हुआ है। यह कदम आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने में सहायक होगा।
बैंकों की भूमिका और ऋण प्रवाह
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 6 जून 2025 को रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट्स (0.50%) की कटौती और नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट्स की कमी के बाद, बैंकों की भूमिका और ऋण प्रवाह में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। इस निर्णय का उद्देश्य आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना और ऋणधारकों को राहत प्रदान करना है।
बैंकों की भूमिका: ऋण प्रवाह को सशक्त बनाना
1. ब्याज दरों में कमी और ऋण की उपलब्धता
रेपो रेट में कटौती के बाद, बैंकों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेना सस्ता हो गया है। इससे बैंकों को उपभोक्ताओं को कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करने की सुविधा मिलती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों के लिए ऋण की पहुंच को आसान बनाएगा, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी。
2. नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में कमी का प्रभाव
CRR में 100 बेसिस पॉइंट्स की कमी से बैंकों के पास अधिक तरलता उपलब्ध होगी, जिससे वे अधिक ऋण प्रदान कर सकेंगे。 यह कदम विशेष रूप से उन क्षेत्रों में सहायक होगा जहां ऋण की मांग अधिक है, जैसे कि आवास, ऑटोमोबाइल और लघु एवं मध्यम उद्यम (SMEs)
3. ऋण प्रवाह में तेजी
बैंकों को अब अधिक तरलता और कम उधारी लागत के साथ, उपभोक्ताओं और व्यवसायों को ऋण प्रदान करने में आसानी होगी। यह ऋण प्रवाह में वृद्धि करेगा, जिससे आर्थिक विकास को बल मिलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम निवेश और उपभोग दोनों को प्रोत्साहित करेगा।
ऋण प्रवाह: विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव
1. आवास क्षेत्र
रेपो रेट में कटौती से होम लोन की ब्याज दरों में कमी आएगी, जिससे ईएमआई कम होगी और अधिक लोग आवास ऋण लेने के लिए प्रेरित होंगे。 यह आवास क्षेत्र में मांग को बढ़ावा देगा और निर्माण गतिविधियों में तेजी लाएगा।
2. ऑटोमोबाइल उद्योग
कम ब्याज दरों के कारण वाहन ऋण सस्ते होंगे, जिससे उपभोक्ताओं के लिए वाहन खरीदना आसान होगा। यह ऑटोमोबाइल उद्योग में बिक्री को बढ़ावा देगा और उत्पादन में वृद्धि करेगा。
3. लघु एवं मध्यम उद्यम (SMEs)
SMEs के लिए ऋण की उपलब्धता में सुधार होगा, जिससे वे अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकेंगे। यह रोजगार सृजन और आर्थिक विकास में सहायक होगा।
निष्कर्ष
RBI द्वारा रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती एक साहसिक और रणनीतिक कदम है, जिसका उद्देश्य आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करना और उपभोक्ताओं को राहत प्रदान करना है। हालांकि, गवर्नर मल्होत्रा ने स्पष्ट किया है कि भविष्य में मौद्रिक नीति में और कटौतियों की संभावना सीमित हो सकती है, जिससे संकेत मिलता है कि यह निर्णय समय की मांग और आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप लिया गया है।
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